डा विनीता शास्त्री
कुछ दिनों पहल् Times of India एक आलेख पढने को मिला Mother Can Stop Terrorism आल्ेाख अच्छा अैार जानकारीेपूरक था कि दुनिया में इस दिशा में चिन्तन प्रारम्भ हो गया है कि मां ही मात्र विकल्प है जो आतंकवाद से दुनिया को बचा सकती है | कैसे मां को टूल्स की तरह इस्तेमाल किया जाय्ेा| आलेख में दुनिया की कर्इ Mom ने अपनी पीड,ा बतार्इ थी जिनके बच्चे आतंकवादियों के च्ंागुल में थे या सजा प्राप्त कैदी थे या मारे जा चुके थे या जिनका इस्तेमाल मानव बम के रूप मे हो रहा था |
सच्चार्इ है कि जिस किसी परिवार का सदस्य आतंकवादियों से सम्बन्धित हो जाय्ेा वह परिवार
उस विचार से असहमत होते हुये भी समाज में मौत के बराबर पीड,ा झेलता है और मां का दुख तो
अभिव्यक्ति से परे है | आज यह विश्व की गंभीरतम समस्या है | निदान…||सूझ नहीं रहा |
ऐसे में यदि Mother Can Stop Terrorism िजैसा विचार वेस्टर्न देशों से आ रहा है तो पहली नजर में यह शुभ संकेत है साथ ही भारत के परिवार व्यवस्था को एकमात्र विकल्प के रूप में स्वीकार करने की आशाभरी चेष्टा भी दिखती है |
कोर्इ बदलाव की क्रंाति परिवार से ही प्रारम्भ होती हैै निश्चय ही
परिवार की मूल कडी मां है जो अपने ही हार मांस मज्जा से सन्तान को मूर्त करती है | उसके भावना
भीति और उसके सोच को दिशा दे सकती है |उसके भीतर दया करुणा ममता स्नेह राग आस्था देशभक्ति के भाव भर सकती है | परिवार का कोर्इ सदस्य अगर अपने रास्ते से भटकता है तो उसकी पहली आहट माता को होती है | ऐसे में यह आकलन उचित हेैेेे mother can stop, भारतीय समाज म ंेपरिवार और समाज एका,,,त्त्म संगठन हैा अन्य देशों में व्यक्ति इकार्इ है
और सारी र्इकाइयंा अलग अलग स्वतं्र्रत्र है | ऐसे में वेस्टर्न की तरफ से यह सोच आ रही है तो उन्हें भीे भारत की पुरानी जीवन व्यवस्था एकमात्र विकल्प दिख रहा है |
आतंकवाद है क्या इसे विस्तार में न जाकर थोडे में समझें
आतंक अर्थात भय अपनी बात मनवाने के लिये दूसरों को भयभीत करना | उसके प्राण धर्म प्रतिष्ठा
को क्ष्र्रातिग्रस्त करने का प्रयास आतंकवाद हैै | इसके दो स्वरूप हैं :
1|संगठित आतंकवाद
2|असंगठित आतंकवाद
पहले यह आंदोलन असंगठित रूप में आता है तब यह ज्यादा दुखदार्इ नहीं होता पर इस वॄति से ग्रस्त व्यति को जब बहुत हठी स्वार्थी लोंग संगठित करने में सफल हो जाता है वहीं से संगठित आतंकवाद प्रारम्भ हो जाता हैै | आज का आतंकवाद भयावह हैै पर इतिहास में देखें तो इसकी अति दिखार्इ देता है |
र्इसार्इयेंा ने अपने पंथ के प्रचार के लिये जैसी क्रातियंा की जिस बर्बरता का प्रयोग किया उसे क्या कहा जा जायेगा | जहां सुकरात और गलेलियो जैसे वैज्ञानिकों के शोधों को बर्इबिल की अवहेलना मानकर दण्डित करना छोटा आतंवाद नहीं कहा जा सकता | पर र्इसार्इ चतुर थे इसलिए जनहित और जनकल्याण के नाम पर इन्होने मानवता को लज्जित करने वाले कॄत्त्य इन्होने एशिया अफ्रीका अमेरिका अस्टे्र्रलिया हर जगह निर्लज्जतापूवर््ाक किये इस्लाम का उदय पॄथ्वी के उस भूभाग पर हुआ जहां जीवन के लिये भौतिक सुख सुविधा का अभाव था इस अभाव के कारण भी उनके भीतर उग्र प्रव्ॄात्ति आयी उसपर अपने पंथ का प्रसार का भूत खूनी तांडव बन गया |निरपराधों असमर्थाें या फिर महिलाओं का उत्त्पीड,न इनके लिए स्वर्ग प्राप्ति का मार्ग बन गया | इनके बर्बरता की भी लम्बी फेहरिस्त है |
एक राजनैतिक सिधान्त के रूप में आतंकवाद का श्रीगणेश उत्तरी एशिया और पूर्वी यूरोप में रूस तथा बाल्टिक प्रदेशों में हुआ हिटलर के द्वारा यहूदियों पर किया जानेवाला अत्त्याचार क्रूरता का घॄणित उदाहरण है | हिगेल के अनुयायि लेनिन स्टालिन माउसे तुंग आदि के द्वारा भी आतंकवाद चलाया गया | आज संसार में चलनेवाला आतंकवाद कहीं सामंतवाद के विरूद्ध कहीं स्वायत्तता या आत्त्मनिर्णय के अधिकार के रूप में चल रहा है | रूस के चेचन्या का आतंकवाद या कश्मीर का आतंकवाद पंथ के प्रसार के नाम पर ही चल रहा है |
किन्तु हर वाद सिधान्त की अति होती है | पूरा विश्व इस अतिवाद से थक चुका है | खुद का खड,ा किया भूत अब खुद को ही निगलने लगा है | आज का पाकिस्तान इसका भुक्तभोगी है | समाधान क्या है… एक स्याह अंधेरा है चारो तरफ…ा भारत की महंगार्इ बेरोजगारी गलत शिक्षा निति ने यहां आतंकवाद को बढावा दिया | आतंकवाद का खेल जो प्रारम्भ हुआ था अपने पंथ के प्रचार के नाम पर अब वह सत्ता स्वार्थ और पैसों के द्वारा power and money का कारोबार हो गया है | भारत का हर दशवा गरीब इतना मजबूर है कि कोर्इ भी बाहर से आकर उसे बहका ले जाता है क्योंकि एक तो साधन का अभाव दूसरा देशभक्ति की भावना का भी अभाव |
समाधान क्या है…………क्योंकि सख्त से सख्त कानून बनाकर भी कोर्इ भी देश इसे कहां
रोक पा रहा है | इसलिए इस प्रश्न की गहरार्इ में जाना होगा समाधान से पूर्व र्निमाण की बात करनी
होगाी उस ओर चिन्तन की दिशा ले जानी होगी | विश्व यदि हमसे विकल्प चाह रहा है तो हमें भी
उस जीवन पद्धति को पुष्ट करना होगा | यह विडम्बना ही है कि अपने विचार परम्परा से स्वतंत्रता की प्राप्ति के बाद हम पूरी तरह से दूर होते चले गये | हमारी परिवार व्यवस्था अत्त्यन्त वैज्ञानिक, ,मनोवैज्ञानिक शोधों के बाद निर्मित हुर्इ थी जहां बालपन से निर्माण की प्रक्रिया शुरु होती थी |
हमारी शिक्षा व्यवस्था सिर्फ जानकारियों का ढेर नहीं हुआ करती थी | आज भारत की शिक्षा विश्व की देखादेखी में एक आस्थाहीन मनुष्य बनाने की प्रकिया मात्र है जिससे व्य्क्ति सिर्फ सीता राम कहना भूल सकता है और जीओ और जीने दो की आत्त्मा को खत्त्म कर सकता है | इसलिए आज का युवा या युवति जिन्हें दो साल की उम्र से स्कूल भेजा जाता है जहां उन्हें किताबों के बण्डल में कहीं कुछ सौम्य ललित कोमल रागपूर्ण सौन्दर्य से युक्त कर्तव्य के लिए प्रेरित करने वाला कुछ नहीं मिलता फिर वह अपन्ेा भीतर एक ऐसी दुनिया बना लेता है जो सुखी होने के लिए कुछ भी करने को आतुर दिखता है | उसके इर्द गिर्द कोर्इ ऐसा बन्धन नहीं जो उसे बांध सके | फिर पूरे जीवन का उद्देश्य उपार्जन करना बना लेता है |
वह देश के लिए कुछ करने का जज्बा समाज के समस्या को समझने उसे दूर करने
की कोर्इ परिकल्पना नहीं बुन पाता | सही गलत का सूक्ष्म बोध नहीं होने के कारण जो आसान उपार्जन का रास्ता दिखाता है वहां वह फंसता चला जाता है ऐसे में पैसे लेकर बन्दूक उठाने में भी उसे कुछ पाप नहीं दिखता | हितैषी विरोधी सब अनदेखा हो जाते हंै |
भारत में पिछले 65 साल में किसी ने किसी को देशभक्ति
क्या है देश के साथ पे्रम क्या है देश के साथ गद्दारी क्या है बताया ही नहीं | ये सारे तएरम् सिर्फ
फौजियौं के लिए छोड दिये गये | भीड, में खड,े होकर जन गण मन गा लेने से देश प्रेम नहीं आता
एक विवश दामिनि पर पूरा देश खड,ा हो जाता है पर आतंकवादियों का सहयोग कर देता है | क्यों …आतंकवादियों की विचारधारा युवकों को प्रभावित कर देती है कारण वही होता है पैसों की जरुरत और देशभक्ति की भावना का अभाव |
पर जिस मूल विषय को लेकर हम चले थे कि mother can do. but how can क्या यह सम्भव है | एक positive भाव आता है कि मातॄत्त्व में वह ताकत है | पर इस परिकल्पना को मूर्त करने के लिये भारत के पॄष्टों में से पिछले साठ साल को मिटाना होगा | क्योंकि पिछली पीढी और आज की पीढी में वह भाव हस्तांतरित होकर नहीं आय्ेा | आज की mother भी उसी गलत शिक्षा नीति और टूटते परिवार व्यवस्था से निकली हुर्इ एक आस्थाहीन हॄदयहीन पीढी है | उसने भी वही बस्ता ढोनेवाली पढार्इ की है उनके भी वही सपने है जो उनकी सन्तान के हैं उन्हीं चीजों को अपने बच्चों में आज उभार भी रही ह ै: tip top ;go to shop|
आज जो परिवार दिखता है वह दो लोगेा ने मिलकर खड,ा जरूर कर लिया है सन्तान भी मिल गयी है पर किसलिये सन्तान किसलिये परिवार उसमें अपनी भूमिका तय नहीं कर पाये फिर क्या मातॄत्त्व और क्या पितॄत्त्व | तभी तेा प्रश्न उठता है कि मातॄत्त्व को रेमेडी के रूप में प्रयोग करने वाले कहां से शुरू करेंगे क्या पहले मां बनाओ फिर वह बच्चे बनायेगी | यही आधार नहीं होगा | तभी तो बड,े बडे संगठन जो मदर को आतंकवाद से लड,ने का माध्यम बनाना चाहते हैं उन्हें mother school programe around the world शुरू करना पड, रहा है | वे मां को tools सिखा रहे हैं जो परिवार में delicate issues उठा सके | …बात वहीं आकर रुक जाती ह ै: भावनात्त्मक बन्धन भावनात्त्मक शिक्षा सोच की दिशा देश के हित अहित पर चर्चा साहित्त्यिक चरित्रों से जोड,कर राम रहीम की कथा के माध्यम से समाज से लगाव अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान इतिहास के माध्यम से सही गलत का आकलन | पूजा पद्धतियों के माध्यम से हॄदय में आस्था विश्वास का जागरण परिवार ,: माता पिता भार्इ बहन सगे सम्बन्धियो के अटूट बन्धन का बोध | यही भारतीय परम्परा रही है जो आज भी विकल्प है जो पीढी दर पीढी स्वत,: बाल किशोर युवक युवती में आ जाया करती थी |
बीसवीं शताब्दी के उतरार्ध में यह व्यवस्था समाप्त हो चुकी है | आज का समाज उसका उदाहरण है जहां युवक युवतियां समान रूप से अपराध की ओर बढ रहे हैं और सरकार को भी कोर्इ समाधन सूझ नहीं रहा |…आप फौज के माध्यम से तोप बन्दूक से परदेशियों पर विजय प्राप्त कर लेंगे कुछ देशी आन्दोलन को भी कुचल देंगे |…पर आपका बच्चा अपनी ही मां के विरुदध बन्दूक नहीं उठाय्ेागा उसके लिए क्या करंेगे | भारत माता से गद्दारी नहीं तो क्यों नहीं इस आन्तरिक भितिका निर्माण कैसे होगा |
इसलिए mother को tools की तरह इस्तेमाल करने वालों का सपना प्रारम्भ से ही आशंकाओं से घिरा है | क्योंकि बंजर धरती से फसल की क्या कल्पना | विचार का अच्छा होना सबकुछ नहीं उसके लिये दूरदर्शिता फलदायी होती है | भारत की तरफ जो लोग आशाभरी निगाहों से देख रहे हैं उन्हें लम्बी पतिक्षा करनी होगी क्योंकि पूरा भारतीय समाज स्वयं एक भटका हुआ हूजूम है जिसे पुनर्निमाण की एक व्यवस्थित दूरगामी प्रकिया से गुजरना होगा |
हर व्यक्ति के भीतर सुप्तावस्था में मातॄभूमि के लिये कुछ भाव जरूर होता है क्येाकि मिट्टी भी अपने में बहुत कुछ छुपाये होती है आवश्यकता है उसे जगाने की | उस अन्र्तसुप्त चेतना को दिशा देने की अन्यथा संसार भर की शक्ति आज हारती नजर आ रही है और हारती रहेगी | यह आतंकवाद रुक नहीं सकता आपके भीतर से ही वह बार बार आय्ेागा ||ा
1st make a good mother who can make a good generation then we can fight with crime and terrorism.
एकहि साधे सब सधे………ा