Tuesday, 24 June 2014

MOTHER CAN STOP TERRORISM

                           
डा विनीता शास्त्री                                                                            
कुछ दिनों पहल् Times of India एक आलेख पढने को मिला  Mother Can Stop Terrorism  आल्ेाख अच्छा अैार जानकारीेपूरक था कि दुनिया में इस दिशा में चिन्तन प्रारम्भ हो गया है कि मां ही मात्र विकल्प है जो आतंकवाद से दुनिया को बचा सकती है | कैसे मां को टूल्स की तरह इस्तेमाल किया जाय्ेा| आलेख में दुनिया की कर्इ Mom ने अपनी पीड,ा बतार्इ थी जिनके बच्चे आतंकवादियों के च्ंागुल में थे या सजा प्राप्त कैदी थे या मारे जा चुके थे या जिनका इस्तेमाल मानव बम के रूप मे हो रहा था |
        सच्चार्इ है कि जिस किसी परिवार का सदस्य आतंकवादियों से सम्बन्धित हो जाय्ेा वह परिवार
 उस विचार से असहमत होते हुये भी समाज में मौत के बराबर पीड,ा झेलता है और मां का दुख तो
 अभिव्यक्ति से परे है | आज यह विश्व की गंभीरतम समस्या है | निदान…||सूझ नहीं रहा |
ऐसे में यदि Mother Can Stop Terrorism िजैसा विचार वेस्टर्न देशों से आ रहा है तो पहली नजर में यह शुभ संकेत है  साथ ही भारत के परिवार व्यवस्था को एकमात्र विकल्प के रूप में स्वीकार करने की आशाभरी चेष्टा भी दिखती है |
                             कोर्इ बदलाव की क्रंाति परिवार से ही प्रारम्भ होती हैै निश्चय ही
परिवार की मूल कडी मां है जो अपने ही हार मांस मज्जा से सन्तान को मूर्त करती है | उसके भावना
भीति और उसके सोच को दिशा दे सकती है |उसके भीतर दया करुणा ममता स्नेह राग आस्था देशभक्ति के भाव भर सकती है | परिवार का कोर्इ सदस्य अगर अपने रास्ते से भटकता है तो उसकी पहली आहट माता को होती है | ऐसे में यह आकलन उचित हेैेेे mother can stop, भारतीय समाज म ंेपरिवार और समाज एका,,,त्त्म संगठन हैा अन्य देशों में व्यक्ति इकार्इ है
और सारी र्इकाइयंा अलग अलग स्वतं्र्रत्र है | ऐसे में वेस्टर्न   की तरफ से यह सोच आ रही है तो उन्हें भीे भारत की पुरानी जीवन व्यवस्था एकमात्र विकल्प दिख रहा है |
                                        आतंकवाद है क्या इसे विस्तार में न जाकर थोडे में समझें
आतंक अर्थात भय अपनी बात मनवाने के लिये दूसरों को भयभीत करना | उसके प्राण धर्म प्रतिष्ठा
को क्ष्र्रातिग्रस्त करने का प्रयास आतंकवाद हैै | इसके दो स्वरूप हैं :
1|संगठित आतंकवाद
2|असंगठित आतंकवाद
पहले यह आंदोलन असंगठित रूप में आता है तब यह ज्यादा दुखदार्इ नहीं होता पर इस वॄति से ग्रस्त व्यति को जब बहुत हठी स्वार्थी लोंग संगठित करने में सफल हो जाता है वहीं से संगठित आतंकवाद प्रारम्भ हो जाता हैै | आज का आतंकवाद भयावह हैै पर इतिहास में देखें तो इसकी अति दिखार्इ देता है |
      र्इसार्इयेंा ने अपने पंथ के प्रचार के लिये जैसी क्रातियंा की जिस बर्बरता का प्रयोग किया उसे क्या कहा जा जायेगा | जहां सुकरात और गलेलियो जैसे वैज्ञानिकों के शोधों को बर्इबिल की अवहेलना मानकर दण्डित करना छोटा आतंवाद नहीं कहा जा सकता | पर र्इसार्इ चतुर थे इसलिए जनहित और जनकल्याण के नाम पर इन्होने मानवता को लज्जित करने वाले कॄत्त्य इन्होने एशिया अफ्रीका अमेरिका अस्टे्र्रलिया हर जगह निर्लज्जतापूवर््ाक किये इस्लाम का उदय पॄथ्वी के उस भूभाग पर हुआ जहां जीवन के लिये भौतिक सुख सुविधा का अभाव था इस अभाव के कारण भी उनके भीतर उग्र प्रव्ॄात्ति आयी उसपर अपने पंथ का प्रसार का भूत खूनी तांडव बन गया |निरपराधों असमर्थाें या फिर  महिलाओं का उत्त्पीड,न इनके लिए स्वर्ग प्राप्ति का मार्ग बन गया | इनके बर्बरता की भी लम्बी फेहरिस्त है |
       एक राजनैतिक सिधान्त के रूप में आतंकवाद का श्रीगणेश उत्तरी एशिया और पूर्वी यूरोप में रूस तथा बाल्टिक प्रदेशों में हुआ हिटलर के द्वारा यहूदियों पर किया जानेवाला अत्त्याचार क्रूरता का घॄणित उदाहरण है | हिगेल के अनुयायि लेनिन स्टालिन माउसे तुंग आदि के द्वारा भी आतंकवाद चलाया गया | आज संसार में चलनेवाला आतंकवाद कहीं सामंतवाद के विरूद्ध कहीं स्वायत्तता या आत्त्मनिर्णय के अधिकार के रूप में चल रहा है | रूस के चेचन्या का आतंकवाद या कश्मीर का आतंकवाद पंथ के प्रसार के नाम पर ही चल रहा है |
                                   किन्तु हर वाद सिधान्त की अति होती है | पूरा विश्व इस अतिवाद से थक चुका है | खुद का खड,ा किया भूत अब खुद को ही निगलने लगा है | आज का पाकिस्तान इसका भुक्तभोगी है | समाधान क्या है… एक स्याह अंधेरा है चारो तरफ…ा भारत की महंगार्इ बेरोजगारी गलत शिक्षा निति ने यहां आतंकवाद को बढावा दिया |  आतंकवाद का खेल जो प्रारम्भ हुआ था अपने पंथ के प्रचार के नाम पर अब वह सत्ता स्वार्थ और पैसों के द्वारा power and money  का कारोबार हो गया है | भारत का हर दशवा गरीब इतना मजबूर है कि कोर्इ भी बाहर से आकर उसे बहका ले जाता है क्योंकि एक तो साधन का अभाव दूसरा देशभक्ति की भावना का भी अभाव |
          समाधान क्या है…………क्योंकि सख्त से सख्त कानून बनाकर भी कोर्इ भी देश इसे कहां
रोक पा रहा है | इसलिए इस प्रश्न की गहरार्इ में जाना होगा समाधान से पूर्व र्निमाण की बात करनी
होगाी उस ओर चिन्तन की दिशा ले जानी होगी | विश्व यदि हमसे विकल्प चाह रहा है तो हमें भी
उस जीवन पद्धति को पुष्ट करना होगा | यह विडम्बना ही है कि अपने विचार परम्परा से स्वतंत्रता की प्राप्ति के बाद हम पूरी तरह से दूर होते चले गये | हमारी परिवार व्यवस्था अत्त्यन्त वैज्ञानिक, ,मनोवैज्ञानिक शोधों के बाद निर्मित हुर्इ थी जहां बालपन से निर्माण की प्रक्रिया शुरु होती थी |                    
हमारी शिक्षा व्यवस्था सिर्फ जानकारियों का ढेर नहीं हुआ करती थी | आज भारत की शिक्षा विश्व की देखादेखी में एक आस्थाहीन मनुष्य बनाने की प्रकिया मात्र है जिससे व्य्क्ति सिर्फ सीता राम कहना भूल सकता है और जीओ और जीने दो की आत्त्मा को खत्त्म कर सकता है | इसलिए आज का युवा या युवति जिन्हें दो साल की उम्र से स्कूल भेजा जाता है जहां उन्हें किताबों के बण्डल में कहीं कुछ सौम्य ललित कोमल रागपूर्ण सौन्दर्य से युक्त कर्तव्य के लिए प्रेरित करने वाला कुछ नहीं मिलता फिर वह अपन्ेा भीतर एक ऐसी दुनिया बना लेता है जो सुखी होने के लिए कुछ भी करने को आतुर दिखता है | उसके इर्द गिर्द कोर्इ ऐसा बन्धन नहीं जो उसे बांध सके | फिर पूरे जीवन का उद्देश्य उपार्जन करना बना लेता है |
              वह देश के लिए कुछ करने का जज्बा समाज के समस्या को समझने उसे दूर करने
की कोर्इ परिकल्पना नहीं बुन पाता | सही गलत का सूक्ष्म बोध नहीं होने के कारण जो आसान उपार्जन का रास्ता दिखाता है वहां वह फंसता चला जाता है ऐसे में पैसे लेकर बन्दूक उठाने में भी उसे कुछ पाप नहीं दिखता | हितैषी विरोधी सब अनदेखा हो जाते हंै |
                                        भारत में पिछले 65 साल में किसी ने किसी को देशभक्ति
क्या है देश के साथ पे्रम क्या है देश के साथ गद्दारी क्या है बताया ही नहीं | ये सारे तएरम् सिर्फ
फौजियौं के लिए छोड दिये गये | भीड, में खड,े होकर जन गण मन गा लेने से देश प्रेम नहीं आता
     एक विवश दामिनि पर पूरा देश खड,ा हो जाता है  पर आतंकवादियों का सहयोग कर देता है | क्यों …आतंकवादियों की विचारधारा युवकों को प्रभावित कर देती है कारण वही होता है पैसों की जरुरत और देशभक्ति की भावना का अभाव |          
                                                       पर जिस मूल विषय को लेकर हम चले थे कि mother can do. but how can क्या यह सम्भव है | एक positive भाव आता है कि मातॄत्त्व में वह ताकत है | पर इस परिकल्पना को मूर्त करने के लिये भारत के पॄष्टों में से पिछले साठ साल को मिटाना होगा | क्योंकि पिछली पीढी और आज की पीढी में वह भाव हस्तांतरित होकर नहीं आय्ेा | आज की mother भी उसी गलत शिक्षा नीति और टूटते परिवार व्यवस्था से निकली हुर्इ एक आस्थाहीन हॄदयहीन पीढी है | उसने भी वही बस्ता ढोनेवाली पढार्इ की है उनके भी वही सपने है जो उनकी सन्तान के हैं उन्हीं चीजों को अपने बच्चों में आज उभार भी रही ह ै: tip top ;go to shop|
आज जो परिवार दिखता है वह दो लोगेा ने मिलकर खड,ा जरूर कर लिया है सन्तान भी मिल गयी है पर किसलिये सन्तान किसलिये परिवार उसमें अपनी भूमिका तय नहीं कर पाये फिर क्या मातॄत्त्व और क्या पितॄत्त्व | तभी तेा प्रश्न उठता है कि मातॄत्त्व को रेमेडी के रूप में प्रयोग करने वाले कहां से शुरू करेंगे क्या पहले मां बनाओ फिर वह बच्चे बनायेगी | यही आधार नहीं होगा | तभी तो बड,े बडे संगठन जो मदर को आतंकवाद से लड,ने का माध्यम बनाना चाहते हैं उन्हें mother school programe around the world शुरू करना पड, रहा है | वे मां को tools सिखा रहे हैं जो परिवार में delicate issues  उठा सके | …बात वहीं आकर रुक जाती ह ै: भावनात्त्मक बन्धन भावनात्त्मक शिक्षा सोच की दिशा देश के हित अहित पर चर्चा साहित्त्यिक चरित्रों से जोड,कर राम रहीम की कथा के माध्यम से समाज से लगाव अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान इतिहास के माध्यम से सही गलत का आकलन | पूजा पद्धतियों के माध्यम से हॄदय में आस्था विश्वास का जागरण परिवार  ,: माता पिता भार्इ बहन सगे सम्बन्धियो के अटूट बन्धन का बोध | यही भारतीय परम्परा रही है जो आज भी विकल्प है जो पीढी दर पीढी स्वत,: बाल किशोर युवक युवती में आ जाया करती थी |
     बीसवीं शताब्दी के उतरार्ध में यह व्यवस्था समाप्त हो चुकी है | आज का समाज उसका उदाहरण है जहां युवक युवतियां समान रूप से अपराध की ओर बढ रहे हैं और सरकार को भी कोर्इ समाधन सूझ नहीं रहा |…आप फौज के माध्यम से तोप बन्दूक से परदेशियों पर विजय प्राप्त कर लेंगे कुछ देशी आन्दोलन को भी कुचल देंगे |…पर आपका  बच्चा अपनी ही मां के विरुदध बन्दूक नहीं  उठाय्ेागा उसके लिए क्या करंेगे | भारत  माता से गद्दारी नहीं तो क्यों नहीं इस आन्तरिक भितिका निर्माण कैसे होगा |
                 इसलिए mother को tools की तरह इस्तेमाल करने वालों का सपना प्रारम्भ से ही आशंकाओं से घिरा है | क्योंकि बंजर धरती से फसल की क्या कल्पना | विचार का अच्छा होना सबकुछ नहीं उसके लिये दूरदर्शिता  फलदायी होती है | भारत की तरफ जो लोग आशाभरी निगाहों से देख रहे हैं उन्हें लम्बी पतिक्षा करनी होगी क्योंकि पूरा भारतीय समाज स्वयं एक भटका हुआ हूजूम है जिसे पुनर्निमाण की एक व्यवस्थित दूरगामी प्रकिया से गुजरना होगा |
                                                   हर व्यक्ति के भीतर सुप्तावस्था में मातॄभूमि के लिये कुछ भाव जरूर होता है क्येाकि मिट्टी भी अपने में बहुत कुछ छुपाये होती है आवश्यकता है उसे जगाने की | उस अन्र्तसुप्त चेतना को दिशा देने की अन्यथा संसार भर की शक्ति आज हारती नजर आ रही है और हारती रहेगी | यह आतंकवाद रुक नहीं सकता आपके भीतर से ही वह बार बार आय्ेागा ||ा
                                    1st make a good mother who can  make a good generation then we can fight with crime and terrorism.
                     एकहि साधे सब सधे………ा      

Tuesday, 4 June 2013

Godhra or Gujarat


    xks/kjk vkSj xqtjkr
              & Mk + fouhrk ’kkL=h
jaanao kba [sa doSa ko baaiSMado BaartvaasaI sao BaartIya hao sakoMgao
kba Antr samaJa maoM Aayoagaa [nhoM yahaM rhnao AaoooOr yahaM ko haonao maoM
yah eosaa ivaBad hO jaao fOlaa hO maoro bastI mMaMo maoro pirvaar maoM AaOr maoro samaaja maoM
jaao isaf- fk- krnaa jaanata hO gaaoQara maoM AaOr gaujarat maoM
gaaoQara maoM jaao huAa vah p`yaasa qaa sava-Qama- sama\Baava ka
p`itik`yaa maoM jaao huAa vah narsaMGaar qaa isaf- narsaMGaar qaa
[-ithasa kao BaUla jaaAao AaOr nayaI duinayaa basaaAao ko naaroaM nao
Baulaa idyaa pid\manaI ka jaOahr AaOr AsaMK\ya kSmaIrI
yauvityaoMa ka vah maaOna bailadana
pr QaQakto laaogaaoM kI vah inadao-Ya caIKMo ijanako raoAaoM kao
isahra na sakIM sama\vaodnaa ko dao Sabd ijanako ilayao ]Qaar na imalaa
yah kOsaI duinayaa banaayaI hO [sa doSa ko baaiSaMdao nao
yamaraja caup hO @yaa kroM Aba kao[- naicakota p`Sna nahIM ]zata
yaxap`Sna BaI maaOna hO @yaa kro kao[ Qama-raja nahIM Aata
Aba kao[- d`aOpdI nahIM jaao sa<ya ko ilayao ApnaI vaoNaI Kaolao
ifr yah ivaBaod roako nahIM rUk payaogaa
ivaBaoidyaaoM ka yauga hO ivaBaod hI fOlaayaogaa tBaI tao
svaNaaxaraoM maoM ilaKa jaayaogaa
gaaoQara maoM jaao huAa vah p`yaasa qaa savaQama- sama\Baava ka
p`itik`yaa maoM jaao huAa vah narsaMGaar qaa isaf- narsaMGaar qaa
…………………………………………………………………       

Saturday, 30 March 2013

Scientification in India


                                                                                                         Dr. Vineeta Shastri
The system of thought stream has been moving in usual and natural manner since long past. Whenever India was brought to focus on the global domain, it was with the contribution of the saints of the likes of Rishi Agastya, Lopamudra, Mahatma Buddha, Sanghamitra, Maharshi Arvind, Swami Vivekananda and Mahatma Gandhi. They were all prophets of spiritual thoughts. So it was accorded as ‘India is a spiritual land’. It is a fact that India has always been a pioneer in this field. We have been proclaiming with pride that the world will have to knock our doors for lessons in religion and faith. Where is the other place?
In course of time, due to monotony in reasoning and harmony in philosophy an usual perplexity arose in human mind. It was more evident in case of dependence of spiritual thought on negation. In India gospels of spiritual reasons began to explain that the body is the combination of five elements, it is transitory and perishable. A concept spread in the society that the negligence towards body, its non-acceptance, and the belief in the immortality of the soul is the spirituality. The effect of such concept is apparent in the form of Yogi and sanyasi with shabby beard, matted hair and long nails.
Such questionable reasoning alerted the Indian intellectual sector. As such those who have been explaining the world and the worldly affairs turned their minds towards the attractions of Science. The long established definition of the origin of the universe by unison of living consciousness and inner matters was dismissed to proclaim its new definition of origin by the single element - the matter only. This laid to the rise of the material science – the western science – SCIO - the Latin word which means I know. They gradually established the definition of Science that ‘the gradual knowledge is Science.
The definition itself indicates the relevance of its expansion. Here knowledge is posed as a set of information entangled in the currents of  ‘Which’ and ‘What’ and vice-versa, so to quench the thirst of the curious searcher only with gradual information. There is nothing to disagree with the glittering wonders of the Science has brought before the world. It has interlinked the whole world through internet and telephones, measured the distance between the Earth and the sky and touched the surface of the moon. However it is still equipment not the equipped.
Science had become the goal in the 20th century. Competitions started among the nations in the field of invention of nuclear arms and fire arms and their testing. Although as an immediate consequence,   many varieties of plants and creatures vanished from the world scene forever. If this was of profit or not is a separate subject of assessment.
Now, let us come to the consequence. So far Science has been an equipment, a mode for the mankind to assess its achievements and shortcomings, but the blind imitation of western concept of Science and its wide admirations turned it to a final goal in India – but silently.
Indians were able to bring the imagination to perception by discussion, but they changed their idea only to concentrate over the utility of the perceivable matters. The compilation started in this direction to adopt it as life-style and a utilitarian culture cropped up.
It is said such a philosophy was propagated in India by Saint Vrihaspati for devils, who faced self destruction with its adoption.
It perplexes why Indians, who admit Vrihaspati as their sole mentor did adopt such philosophy in life which turned them to stand in the rank and file of the devils. The present Indian society poses its projection in evidence.
Now, when the almighty has shifted its abode has also taken away with him self the gauge of morality. The well adorned Shaligram from the golden thrones in the sacred temples has jumped out to the filthy slums. Modernization has buried the carcass of the tradition.
Education, which was a well adopted mode to run the race from the bondage to liberty has been limited to a mere pile of information. The products of Science amidst gradual information have turned to be mere pile of ill-faith and distrust to lurch in imbalance and equilibrium.
The religion and spirituality were since tagged to morality and the path to tread from this world to the world after came down only to a sect and sectarian politics to protect the life of democracy anyway. Physical appetite has erupted in such a way that collection of materials and means to fetch it, and collection of property for means and material, power to acquire the sumptuous properties and complexities for regular expansion of power have become the ‘standard of living’ and ‘status symbol’ of a noble person. Those who rise high in pride of their construction of nuclear or fire arms should first face the innocent Kashmiris who are deceived to death every moment by dint of exemplary scientific achievements, or they should face once the human race, birds and insects or even the plants in Hiroshima of Japan for whom the Science has not so far been able to heal.
What is it? A sheer devastation of terrestrial life. It is a consequence of the immature conversion to adopt science as life style, in place of taking it as an art. Science can replace the age old Indian philosophical thoughts. Indian thought preaches the restrain of organs and mind as primary need but the science advocates its essential expansion of luxury in every action and feeling.
Waiting aside for the whole world India should first realize that whatever aspiration was served by the scientific reasoning to bring prosperity and happiness in the Universe, was a childish one. The assurance could not take shape so every western country which was founded on scientific footing feel indecisive to march further in thought of philosophy. The pictorial dream of castle could not come in existence.
So, India will have to come out of the present blind race and shall have to realize that Science is simply a technique – technology. Socialism proposed the theory of distribution only, not the theory of production and tried to establish itself on the throne of philosophy but was uprooted from the world all over. Similarly, the modern scientists are engaged in propagating the culture of philosophy and life style. They very well understood their limitations. They find no answer to the question ‘what before the matter?’ They may transplant a gene but can not create it. They can improve the breeds of fruits and vegetables but can not create their seeds. Death rate has been brought within control and the death has been pushed farther with medical aid and care, but to get rid of it finally is still not possible.
So we should have to take into hold the expansion of Science. To lead a life with total dependence on Science has proved to be bearish. So we must be careful and cautious to use it, not that it may use us.

Wednesday, 19 December 2012

lily birthday

Ladki ek armaan ki
balihari mushkaan ki
lagti hai anjaan si
chillati hai tufaan si

khel palat jaata chhan me
bhar jaata umang man me
phirto dhoom machati hai
 gale lipate harshati hai

bachho ki mandali badi
jisme lagti swachand padi
pyaar lutati hai sabko
iski dunia hari bhari

shaam me jab din dhal jata hai
gend liye shishuoon ka dal jut jaata hai
lili lilishor macha hai
sabka man harshata hai

do hi varsh bitaya hai
itne me kya paya hai
hansi khushi ki chhap liye hi
naya janmdin aaya hai

---- nanaji on 2nd birthday of lily

Lily ji ki kavita

Dekh paratha aaloo ka
ji lalchaya bhalu ka
bola main bhi khaunga
kuch ghar bhi le jaunga
lomdi boli na na na..
kuch ghar bhi le jana na
itna sek na paungi
khud bhookhi rah jaungi

Wednesday, 24 October 2012

lily


Goli Aur Paigaam


Bahut kuch kulbulata hai bhitar
Jab galat hota dekh kar bhi
Chup rah jana hota hai
Anarth hota jaankar bhi
Anjaan ban janaa parta hai
Badi se badi anhoni per bhi
Chokna nahi nirvikaar rahna hota hai
Jane yah hamari vivshta hai ya kalyugi kamjori
Jisne hame danisho ke shreni me khara kiya hai.
Pratikaar karna virodh karna
Dakiyanushipan hai jo hame
Pragtisheel hone se rokte hai
Vaibhav ka aadamber chut jata hai
Jo hame loktantra ki agli pankti me khara karte hai.
Esliye hum samaadhan nahi samjhauto ki baat karte hai
Shanti nahi batchit ke aayam dhondhte hai.
Goliyan to nirdosh or sanik jhelte hai
Per hum paigam bhaijte hai
Tabhi to jeeti baji hum
Haar jate hai
Baar baar haar jate hai.